Kerala Plus One Hindi डायरी (Diary)
Activity 1
एक बार सम्राट अशोक को युद्ध शिबिर में कलिंग के राजा मारे जाने की खुश खबर मिली। लेकिन संवाददाता ने बताया कि कलिंग-दुर्ग के फाटक अब भी बंद है। फिर हम कैसे विजय की घोषणा कर सकते हैं। दूसरे दिन सम्राट अशोक अपनी सेना सहित कलिंग दुर्गा पर पहूँचा और सौगन्ध खाया कि आज हम कलिंग पर विजय पताका फहरायेंगे या मृत्यु का आलिंगन करेंगे। तभी कलिंग दुर्ग के फाटक खुल गये। कलिंग की स्रियाँ सैनिकों के वेष में खड़ी थी। इसका संचालन कलिंग राजा की पुत्री पद्मा कर रही थी। सम्राट ने आदरपूर्वक कहा – “देवी, हम स्रियों से युद्ध नहीं करता। शास्त्रों की आज्ञा है।” पद्मा ने गरजती हुई बोली – “वे कौन से शास्त्र है जो स्त्रियों से युद्ध की आज्ञा तो नहीं देते, किंतु निरपराधों की हत्या की आज्ञा देते हैं। यह सुनकर सम्राट अशोक का सिर अपराध से झुक गया। उन्होने अपने शस्त्र नीचे फेंक दिया।
प्रश्न.
सम्राट अशोक का सिर अपराध बोध से झुक गया। उस दिन की घटना के आधार पर सम्राट अशोक की डायरी तैयार करें।
उत्तर :
कलिंग
20 जून 2009
आज मेरा सिर अपराध बोध से झुक गया। मेरा मन घमण्ड से भरा हआ था। मैं ने अपने को विजयी समझ लिया था। संवाददाता के कहने पर मैं अपने सेनासहित कलिंग द्वार पर पहुँचा। सचमुच में हैरान रह गया। कलिंग की सारी स्त्रियाँ सिपाहियों के वेश में हमला के लिए तैयार थीं। इसका संचालन कलिंग के राजा की कन्या पद्मा कर रही थी। मैं ने सोचा इन स्त्रियों से कैसे लडूं। लेकिन युद्ध में में ने कई निरपराधों की हत्या की थी इसपर जब पद्मा ने प्रश्नचिह्न लगाया तब मैं पूरी तरह से शर्मा गया। में ने अपने शस्त्रों को नीचे फेंक दिया। लेकिन आज भी मेरा मन उस घटना से ओतप्रोत रहता है। काश मुझे ईश्वर क्षमा कर देते।
Activity 2
देवनगर में एक सज्जन रहते थे। उनका पुत्र बड़ा गुणवान था। किंतु बुरी संगति में पडकर वह पढ़ाई की ओर से लापरवाह हो गया। उसके माता पिता पुत्र की यह दशा देखकर बहुत चिंतित हुए। एक दिन उसके पिता बाजार से कुछ आम लाये। उसने पुत्र के सामने वे आम एक टोकरी पर रख दिए। उसके साथ एक सड़ा आम भी रखा। पुत्र की समझ में यह नहीं आया कि पिताजी ने अच्छे आमों के साथ सड़ा आम क्यों रखा। अगले दिन पिताजी ने टोकरी उठाकर पुत्र को दिखाया। उसके सभी आम सड़ गये थे। पिताजी ने कहा कि बेटा, एक सड़े आम की संगति से सभी सड़ गए। जीवन में बुरी संगति का फल बुरा ही होता है। पुत्र की आँखें खुल गई। उसने पिता से माफी मांगी।
प्रश्न.
ऊपर की घटना के बारे में पुत्र अपनी डायरी में लिखता है। वह डायरी तैयार करें।
उत्तर :
रायपुर
30 जूलै 2010
अब मेरी आँखें खुल गयीं। आगे मैं बुरी संगति में नहीं पडूंगा। माँ-बाप मेरी लापरवाही पर बडे दुःखी थे। वे किसी न किसी तरह मुझे सही रास्ते पर लाने के प्रयास में थे। पिताजी बाजार से कुछ आम लाकर एक टोकरी पर रख दिये। उसके साथ एक सडा आम भी रखा। मेरी समझ में यह नहीं आया कि अच्छे आमों के साथ यह सडा आम क्यों रखा। अगले दिन पिताजी ने टोकरी उठाकर मुझे दिखाया। मैं पूरी तरह से चकित रह गया। उसके सभी आम सड़ गये थे। इसका राज मुझे पता नहीं चला। पिताजी से मैं समझ पाया कि एक सडे आम की संगति से अन्य सारे सड जाते हैं। इससे मुझे पता चला कि बुरी संगति का फल बुरा ही होता है। आज से में बुरी संगति से दूर रहने का निश्चय किया। असल में पिताजी मेरी ज़िन्दगी को नयी दिशा की ओर मोड दी है। इसके लिए मैं उनपर आभार हूँ।
Activity 3.
एक बार गुरुनानाक के पास जाकर एक धनी व्यक्ति अपना घमंड सुनाया। “यह सारा गाँव मेरे धन और मेरी शक्ति से परिचित है आप मुझे कोई भी काम बताएँ, मैं उसे शीघ्र ही कर दूंगा। नानकजी बोले- “आप इस सुई को ले जाइए। जब हम दोनों मर जाएँगे, तब तुम इसे लौटा देना। वह गुरुनानक जी को प्रणाम करके घर आ गया। उसने अपने मित्र से मरते वक्त सुई वापस करने का कोई उपाय बताने को कहा। मित्र ने कहा – “यह असंभव है। मरने के बाद संसार की कोई भी वस्तु हम अपने साथ नहीं ले जा सकते/ गुरुनानक
जो तुम्हें कुछ सिखाना चाहते हैं।” धनी व्यक्ति दुःखी होकर नानकजी के चरण पकड़ लिये और अपने अज्ञान की माफी मांगने लगा। नानकजी उसे समझाते हुए कहा – “सबसे बड़ा धन है दूसरों का भला करना। मृत्यु के बाद भी यह सच्चा धन हमारे साथ जाता है।” नानकजी के वचन सुनकर धनी व्यक्ति की आँखें खुल गयी।
प्रश्न.
नानकजी के वचन से धनी व्यक्ति की आँखें खुल गयी। उसे सच्चे धन का ज्ञान हो गया। प्रस्तुत घटना के आधार पर धनी व्यक्ति की डायरी लिखें।
उत्तर :
जोधपुर
10 अगस्त 2008
आज गुरुनानकजी ने मेरे जीवन को एक नयी दिशा दी है। उनके वचनों से मेरे मन का अहंकार चकनाचुर हो गये। मन में यही विचार था कि सभी काम बहुत शीघ्र ही में कर सकूँगा। मेरे इस विचार को गुरुदेव ने ठुकराया। गुरुदेव मुझे एक सुई दी। उनके और मेरी मृत्यु के बाद उसे वापस करने को कहा। मैं बिलकुल में दुविधा में पड़ गया। मरने के बाद में यह सुई कैसे लौटा दूं, बारबार सोचने पर भी मुझे पता न चला। निराश होकर मैं गुरुदेव के पास पहुंचकर माफी मांगी। दूसरों की भलाई करने का सलाह देकर उन्होंने मेरे जीवन में एक नया प्रकाश फैलाया।
Activity 4
सुजानसिंह नाम का एक राजा राज करता था। उनका मंत्री हिम्मतसिंह नेक, ईमानदार तथा बहुत ही समझदार था। एक दिन रात को बारह बजे जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि मंत्रीजी अपने कमरे में किसी गहरी चिंता में डूबे हुए थे। राजा के पूछने पर उन्होंने अपनी चिंता का कारण बताया-“महाराज गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष के लगान की वसूली अधिक है। सारे बहीखाते में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं पड़ता। फसल अच्छी न होने पर भी लगान अधिक आया है। यह बात हैरानी की है।” गरीब किसानों के एक भी पैसा व्यर्थ हो जाने में मंत्री सहमत न थे। राजा को मंत्री की बात उचित लगी। दूसरे दिन राजा ने घोषणा की कि अगले वर्ष से आधा ही लगान लिया जाएगा। राजा के इस निर्णय से मंत्री हिम्मतसिंह और प्रजा दोनों खुश हुए।
प्रश्न.
राजा मंत्री पर बहुत प्रसन्न हुए। प्रस्तुत को घटना के आधार पर राजा की डायरी की पन्ना तैयार करें।
उत्तर :
विजयनगर
15 सितंबर 2009
वह घटना में कभी भूल नहीं सकता। रात को बारह बजे जब मेरी नींद खुली तो मंत्री हिम्मतसिंह के कमरे में रोशनी थी। मैं ने कुतूहलता वश उसके कमरे में पहूँचा तो मंत्री को कुछ चिंतित दिखाई पडा। उसे मेरे आगमन का पता नहीं चला। फसल अधिक न होने पर भी गतसाल लगान की वसूली में वृद्धि हुई है और बहीखाते में भी कोई परिवर्तन नहीं है। इसी चिन्ता से मंत्री परेशान थे। उनकी यह चिन्ता मुझे भी सोचने को मजबूर कर दिया। मैं ने फैसला किया कि अगले साल से किसानों से आधा लगान ही लिया जाए। मेरे इस निर्णय से मंत्री हिम्मतसिंह खुश हुए और मुझे भी चैन मिला। असल में मंत्री की सोच प्रजाओं के सामने मेरा नाम अमर कर दिया।
Activity 5
लखनपुर गाँव के एक किसान के चार बेटे थे। चारों अक्सर आपस में लड़ते थे। बेटों के झगडे के बारे में सोचकर किसान बीमार पड़ गया। एक दिन उसने चारों बेटों को बुलाया। और एक एक को पतली लकड़ी देकर कहा “इन्हें तोडो।” उन चारों ने अपनी लकड़ी आसानी से तोड़ दी। फिर उसने चारों लकड़ियों को एक साथ बाँधने को कहा और एक एक से उसे तोड़ देने को कहा। लेकिन कोई तोड़ न सका। किसान ने कहा “जब यह लकड़ियाँ अलग-अलग थी, तो आसानी से वह तोड़ सका। लेकिन लकड़ियों के गट्ठर को तोड़ न सका। ‘संगठन की ताकत’ सबसे बड़ी ताकत होती है। पिता की सीख ने चारों बेटे के हदय का मैल धो दिया।
प्रश्न.
उपर्युक्त खंड के आधार पर परेशान किसान की डायरी तैयार करें।
उत्तर :
लखनपुर
5 अगस्त 2008
में ने अपना पूरा जीवन बच्चों के लिए ही जिये थे। उन पर मुझे कई सपने थे। लेकिन वे मेरे सपनों को साकार नहीं कर पाए। यही दुःख अब मुझे सता रहे हैं। मेरे चार बेटे आलसी है और उनके झगडे से में बहुत परेशान हूँ। अब तो मैं बीमार भी पड़ गया हूँ। मेरे मरने के बाद ये लोग केसे जिएँगे? इनका भविष्य केसा रहेगा? इन्हें तो सीख देने के लिए ज़रूर कुछ उपाय सोचना होगा। शायद इस उपाय से में उन्हें ठीक कर सकूँगा। मुझे लगता है कि इससे उनमें मेहनत की भावना पैदा होगी और भविष्य में अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम बनेंगे।
Activity 6
अहं नामक एक धनिक पुत्र विद्याध्ययन के लिए गुरुकुल गया। उसकी उदंडता और अहंकार को देखकर उसके अन्य साथी कहते – विनय से ही विद्या की शोभा है। अहं उन्हें झिड़कते हुए कहता – “बडे आए विनयवाले। आचार्यजी हमें मुफत में पढ़ाते हैं क्या? उनको हम शुल्क देते है।” आचार्य ने अहं का अभिमान दूर करने का निश्चय किया। एक दिन वे सभी विद्यार्थियों को उद्यान में बागवानी के बारे में समझा रहे थे। वहीं कुएँ से खींचा गया जल नाली से होकर एक घड़े में गिर रहा था। आचार्य अहं से बोले, “देखो तो, घडा भर गया क्या? अहं ने घड़ा उठाकर देखा तो पाया कि वह पेंदी से टूटा हुआ था। इसपर अहं बोला, वह घडा कभी भी नहीं भरेगा क्योंकि नीचे से टूटा हुआ है।”अहं की बात सुनकर आचार्य बोले, “बालकों, तुम सब विद्यार्थी इस घड़े के समान हो और मैं बहता हुआ जल हूँ। मेरे मस्तिष्क से निकला हुआ ज्ञान रूपी जल उसी घड़े में ठहरेगा जिसमें अभिमान का छेद नहीं होगा।” यह सुनकर अहं को अपनी भूल का अहसास हुआ और वह विनय भाव से विद्याध्यन करने लगा।
प्रश्न.
गुरुदेव का उपदेश ने अहं के स्वभाव को बदल दिया। इस घटना के आधार पर अहं की डायरी तैयार करें।
उत्तर :
मीरानगर
25 नवंबर 2010
आज का दिन में कभी भूल नहीं सकता। गुरु ने मेरे मन के अहंकार को टुकरा दिया। धनिक परिवार में जन्मे मेरे मन में अहंकार झलक रहा था। एक दिन हम उद्यान में बैठकर गुरु के वचन सुन रहे थे। भरे हुए घड़े को देखने का दायित्व गुरु ने मुझे सौंपा। घडा देखकर पता चला कि वह पेंदी से टूटा हुआ है। इसमें पानी कैसे भरेगा? गुरु ने घडे के द्वारा मुझे समझाया कि छात्र घडे के समान है और वे स्वयं बहता पानी है। यदि हमारे मन में अहंकार रहें तो गुरु का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। मैं अपनी भूल को समझ पाया और फिर गुरु के आज्ञाकारी शिष्य बना।
Activity 7
एक गाँव के रास्ते पर एक दिन एक लंगडा व्यक्ति बैठा था। उसकी लाठी टूट जाने के कारण बेचारा चल नहीं पाता था। वह किसी गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। बहुत देर तक प्रतीक्षा करने के बाद वह एक पेड़ के नीचे बैठकर सो गया। थोड़ी देर बाद जागा तो उसने देखा कि बारिश हो रही है और उसके ऊपर किसी की कोट पड़ी हुई है। पास ही एक नंगा बालक टूटी हुई लाठी की मरमत कर रहा है। यह देखकर लंगड़े ने उससे पूछा – अरे बालक तू क्यों नंगा बैठा है और तुम ने अपनी कोट मेरे ऊपर क्यों डाली? बालक ने जवाब दिया – में ने तुम्हें पानी में भीगते देखा। यह मुझे अच्छा नहीं लगा। तुम बूढ़े हो, सो लगने पर बीमार पड़ जाते। में बालक हूँ। इससे नंगा रह सकता हूँ। इसलिए मैं ने अपनी कोट उतारकर तुम्हारे ऊपर डाल दी। तुम्हारी लाठी तो टूटी हुई पाई। में उसे ठीक कर रहा हूँ। बालक की ये बातें सुनकर लंगडे व्यक्ति की आँखों में आँसु भर आए।
प्रश्न.
मान लें, इस घटना को लंगडे आदमी ने अपनी डायरी में लिखा। उनकी डायरी का अंश कल्पना
करके लिखें।
उत्तर :
गोरखपुर
8 जून 2012
आज मेरी ज़िन्दगी में एक अजीब घटना घटी। सबसे पहले मनुष्यता का मुख में ने देखा। भगवान ने ही उन्हें मेरे सामने भेज दिया है। पर टूट जाने के कारण मैं चल नहीं सकता था। किसी गाडी की प्रतीक्षा कर रही थी। में बैठे-बैठे पेड़ के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद जब मेरी आँखें खुली तब बारिश हो रही थी और मेरे ऊपर किसी की कोट पड़ी हुई थी। पास ही एक लड़का बैठा हुआ था। मुझे पता चला कि वही बालक मेरे ऊपर कोट डालकर बारिश में स्वयं भीग रहा था। उन्हें देखकर मेरी आँखें सजल हो उठी। में सोचने लगा काश वह मेरा बेटा होता। गरम गरम लू के बाद आने वाली ठंडी हवा जैसा अनुभव मुझे हुआ। मुझे विश्वास है कि भगवान उसका साथ नहीं छोड़ेगा।
Activity 8
गोपाल का मन पश्चाताप की आग से जल रहा था। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था उसने सोचा। गणित परीक्षा का दिन। अध्यापक ने सिर्फ एक ही प्रश्न दिया। प्रश्न बहुत कठिन था। परीक्षा के बीच अध्यापक ने यह घोषणा की कि जो सबसे पहले इस प्रश्न का हल निकालेगा उसे इनाम दिया जाएगा। कोई छात्र प्रश्न का हल नहीं ढूंढ सका। इनाम की लालच में गोपाल ने नकल करके प्रश्न का हल ढूँढ निकाला। अध्यापक ने उसकी तारीफ की और पुरस्कार भी दिया। पर अब उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा है। उसने अध्यापक से सबकुछ बताने का निश्चय किया। अगले दिन सुबह ही वह स्कूल पहुंचा। अध्यापक से सब कुछ बताने का निश्चय किया। अध्यापक को देखते ही वह उनके पैरों पर गिरकर रोने लगा। उसने अपनी गलती केलिए, माफी माँगी। अध्यापक ने कहा – गलती तो मनुष्य से हो ही जाती है। पर जो अपनी गलती पर पश्चाताप करता है वह महान है।
प्रश्न.
घटना के आधार पर गोपाल की डायरी की पन्ना तैयार करें।
उत्तर :
कण्णूर
2 अगस्त 2008
में ने कितनी बड़ी गलती की है? पुरस्कार पाने की इच्छा ने मुझे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया है। कभी भी मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। गणित के अध्यापक ने कक्षा में एक परीक्षा चलायी। अध्यापक ने सिर्फ एक ही प्रश्न दिया। प्रश्न कुछ कठिन था। परीक्षा के बीच उन्होंने बताया कि जो सबसे पहले इसका हल निकालेगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा। कोई भी इसका उत्तर ढंढ नहीं सका। परस्कार की लालच में मैं ने नकल करके प्रश्न का हल निकाला।
अध्यापक ने मेरी खूब प्रशंसा की। मुझे पुरस्कार प्रदान किया गया। लेकिन शामको जब से घर पहुंचा तब से मेरा मन कुछ गलती महसूस कर रहा था। रात को मुझसे सोया नहीं गया। अगले दिन सुबह ही अध्यापक से सबकुछ बताने का निश्चय किया। उन्हें देखते ही मैं उसके पैरों पर गिरकर रोने लगा और माफी मांगी। अध्यापक ने मुझे आश्वास दिलाया कि गलती तो मनुष्य सहज है। लेकिन जो इसपर पश्चाताप करता है वह ही महान है। अब मुझे तसल्ली मिली है। फिर कभी भी इस प्रकार की गलतियों न दोहराने की प्रतिज्ञा ले रहा हूँ।
Activity 9
गाँधीजी ने अपने बचपन में एक बार चोरी की। उन्होंने अपने बड़े भाई के सोने के कड़े से थोड़ा-सा सोना तोड़कर चुरा लिया था। यह चोरी उन्होंने उधार चुकाने केलिए की थी। चोरी करने के बाद गाँधीजी को बड़ा दुःख हुआ। अपने पिता को सारी बात बताकर उनसे माफी मांगने को सोचा। परंतु उनके पिता बीमार थे इसलिए उनसे कुछ भी कहने का साहस गाँधीजी में नहीं था। अंत में उन्होंने एक कागज़ पर उस चोरी के बारे में सब कुछ लिख लिया और उस कागज़ को पिताज़ी के सामने रख दिया। कागज़ में अपने लिए उचित दंड देने की विनती भी की थी। पिताजी को कागज़ देकर गाँधीजी ने उनके पैरों के पास आँख बंद करके बैठ गए। पिताजी ने जब कागज़ पढ़ा तब उनकी आँखों से आँसु बहने लगे। पिताजी को देखकर गाँधीजी भी रोने लगे।
प्रश्न.
खंड के आधार पर गाँधीजी के पिताजी की डायरी तैयार करें।
उत्तर :
पोरबंदर
17 जूलै 2009
आज मेरे जीवन की सबसे दुःखी दिन है। मैं बहुत रोया। अब भी मेरी आँखों में आँस है। मुझे बुखार पड़ी थी। में बिस्तर पर लेट रहा था। बेटे ने आज कुछ कागज़ मुझे सौंपा। उसमें लिखा था कि उसने सोने की चोरी की है। वह भी उधार चुकाने के लिए। जो भी हो चोरी करने से जो पश्चाताप उसके मन में हुई वह मुझे रुला दिया। मैं उसकी सच्चाई पर मुग्ध हुई। यह बात सीधे मुझसे कहकर वह मुझे दुःखाना नहीं चाहता। शायद इसलिए उसने ऐसा उपाय ढूंढ लिया होगा। में मन ही मन उसे माफी दे चुकी थी। मेरा मन कहता है कि वह आगे उन्नति के शिखर तक पहूँचेगा। ईश्वर उसकी भला करें।