Kerala Plus One Hindi वार्तालाप (Conversation)
वार्तालाप / संवाद लिखते समय ध्यान देने की बातें।
Points to Remember
Activity 1
दक्षिण भारत के प्रसिद्ध राजाश्री कृष्णदेवराय के दरबार में अनेक कवि थे। उनमें सबसे श्रेष्ठ थे तेन्नालिराम। उनकी बातें सुनकर सब हँस पडते थे। राजा भी उन्हें बहुत चाहते थे। अन्य लोग उत्तर केलिए घंटों सोचते थे, पर तेन्नालिराम हाज़िर-जवाब थे। एक दिन कृष्णदेवराय ने दरबारियों से पूछा – “हमारे नगर में कितने कोए होंगे।” प्रश्न सुनकर सभी चकित रह गए। किसी ने उत्तर नहीं दिया/राजा ने तेन्नालिराम से यह प्रश्न पूछा तब उन्होंने बेहिचक उत्तर दिया – “दो हज़ार चालीस। कल शामको मैं ने नगर के सारे को ओं की गिनती की थी। उस समय कौए दो हज़ार चालीस ही थे। अब भी आपको शक है तो आप किसी से गिनवाकर देखिए।” तेनालिराम के उत्तर सुनकर राजा हँसने लगे और उनपर प्रसन्न होकर उन्होंने तेनालिराम को एक कीमती मोतियों के हार उपहार के रूप में दिया।
प्रश्न 1.
खंड के आधार राजा कृष्णदेवराय और तेनालीराम के बीच का वर्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
राजा : क्या तेन्नालिरामन आप मेरे प्रश्न का उत्तर दे सकते है?
तेनाली : महाराज आप पूछिए।
राजा : में ने इस दरबार के सभी विद्वानों से यह प्रश्न पूछा लेकिन वे उत्तर नहीं दे पाए।
तेनाली : भगवान की कृपा से मैं कोशिश करूँगा महाराज।
राजा : हमारे नगर में कितने कौए हैं?
तेनाली : दो हज़ार चालीस।
राजा : तुम्हें कैसे इतनी ठीक गिनती मिली?
तेनाली : कल शाम को मैं ने नगर के सारे कौओं की गिनती की थी।
राजा : क्या उससे ज़्यादा नहीं हो सकता?
तेनाली : उस समय दो हजार चालीस ही थे। आपको शंका है तो दूसरों से गिनवा लीजिए।
राजा : ठीक नहीं निकले तो?
तेनाली : आप मुझे दण्ड दे सकते हैं।
राजा : में आपके उत्तर से बहुत प्रसन्न हूँ। यह लीजिए मोतियों का हार।
Activity 2
अजय को चोरी करने की आदत थी / अध्यापक महोदय उसे कई बार दण्ड दे चुके थे। फिर भी बच्चों के बस्तों से चीजें खो जाती थी। सभी का शक अजय पर ही था। आखिर एक दिन अध्यापक ने अजय को तेज़ आवाज़ में डाँटते हुए कहा – यदि अब किसी भी बच्चे का सामान चोरी हुआ, तो पाठशाला से निकाल दिया जाएगा। एक दिन एक बच्चा अचानक रोने लगा। अध्यापक के पूछने पर उसने बताया कि उसकी गणित की पुस्तक खो गयी है। सभी के बस्तों में देखने के बाद आखिर वह किताब राहुल के बस्ते में मिल गई। अध्यापक को आश्चर्य हुआ कि राहुल जैसा ईमानदार बालक भी चोरी कर सकता है। पढ़ाई में वह सब से आगे था. इसलिए अध्यापक ने उसे फिर ऐसा न करने को कहकर बैठा दिया। अध्यापक के चले जाते ही अजय राहुल के पास आया और कहा “अरे ! किताब तो मैं ने चुराई थी, लेकिन वह तुम्हारे बस्ते में कैसे चली गई। राहुल ने अजय से कहा – यदि में ऐसा न करता तो निश्चय ही तुम्हारा नाम पाठशाला से काट दिया जाता। अजय इस घटना से दुःखी होकर पश्चाताप की आँसु बहाने लगा। उसने जीवन में कभी चोरी न करने का निश्चय किया।
प्रश्न 1.
दूसरे दिन अजय अध्यापक के सामने आकर अपना अपराध स्वीकार करता है। तब दोनों के बीच हुए वार्तालाप तैयार कीजिए।
उत्तरः
(अजय अध्यापक के कमरे में आता है)
अजय : (अध्यापक से) नमस्ते जी।
अध्यापक : नमस्ते। आओ अजय, क्या बात है?
अजय : (रोते हुए) जी मुझे माफ कीजिए।
अध्यापक : माफी? क्यों?
अजय : जी मैं ने ही किताब की चोरी की।
अध्यापक : तू? यह कैसे हो सकता है?
अजय : मुझे बचाने के लिए राहुल ने ऐसा किया। यदि कल मेरी चोरी पकड़ी जाती तो
निश्चय ही मेरा नाम पाठशाला से काट दिया जाता। इसलिए वह ऐसा किया। राहुल बेकसूर है।
अध्यापक : देखो अजय, यही सच्ची दोस्ती है। क्या अब तुझे अपनी करनी पर पश्चाताप है?
अजय : (रोता है) जी, ज़रूर। आगे जीवन में मैं कभी चोरी नहीं करूंगा।
अध्यापक : (अजय की आँसू पोंछते हुए) ठीक है, कक्षा में जा। आगे अच्छी तरह पढ़।
Activity 3
रामनगर के राजा अपने सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार केलिए गया। अचानक वह जंगल में रास्ता भटक गया। चलते-चलते वे एक झोपड़ी में पहूँचे। उस झोपड़ी में एक बुढ़िया रहती थी। बुढ़िया ने सूखी घास बिछाकर राजा केलिए बिस्तर लगा दिया। फिर खाना बनाकर सामने परोसा। खाने के बाद राजा वहीं लेटकर सो गया। अगले दिन सिपाहियाँ भी झोपड़ी में आ पहूँचे। जाते समय राजा बुढ़िया से उनके साथ आने की विनती की। लेकिन बुढ़िया ने मना कर दिया / राजा ने उसे कुछ धन देना चाहा। बुढ़िया ने वह भी इनकार कर दिया।
प्रश्न 1.
झोंपड़ी से वापस जाते समय राजा और बुड़िया के बीच का वर्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
राजा : आपके स्वादिष्ठ भोजन और बिस्तर के लिए धन्यवाद।
बुढ़िया : कोई बात नहीं। मैं तो अपना फर्ज निभाया था।
राजा : सभी तो ऐसे करते नहीं। आप भली है।
बुढ़िया : यह सब आपकी कृपा से हुआ है।
राजा : आप मेरे साथ आइए। मैं आपको राजमहल में सारी सुविधाएँ कर देंगे।
बुढ़िया : नहीं महाराज, मुझे अपनी कुटिया ही सबकुछ है।
राजा : वहाँ आप केलिए किसी की कमी नहीं होगी।
बुढ़िया : मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। मैं अपनी झोपडी को महल मानती हैं।
राजा : यह आपकी भलाई है। दुनिया में ऐसे लोग कम ही होंगे।
बढ़िया : आप भी भले मन वाले हैं। इसलिए राजा होकर भी मेरी मेहमानी स्वीकार की है।
राजा : कृपया आप मुझसे कुछ धन ले लीजिए।
बुढ़िया : नहीं महाराज। में धन नहीं चाहती।
राजा : मैं ने आप जैसी स्त्रियों को कभी नहीं देखा।
बुढ़िया : (मुस्कुराते हुए) बाहर सिपाहियाँ आप का इंतज़ार कर रहे हैं।
राजा : ठीक है। में विदा लेता हूँ।
धन्यवाद।
Activity 4
बेटा, यह रजाई लेकर छत पर सुखाने डाल दें। जानकी बेटे राहुल से बार-बार विनती कर रही थी। पर राहुल मानने को तैयार नहीं था। पिछले दिनों आये बाढ़ से वह रजाई पूरी तरह भीग गई थी। रंग पूरा उतर गया था। इसलिए राहुल उसे नाले में फेंकना चाहता था। जानकी उसे सुखाकर किसी गरीब को देना चाहती थी। इसलिए उसने उस भीगी हुई रजाई को सुखाया। राहुल उसे लेकर पासवाले मुहल्ले में गया। वहाँ एक नाला था। तभी एक बुढ़िया उसके पास आयी। सर्दी के मौसम में उसके पास ठीक कपड़े भी नहीं थे। उसके माँगने पर राहुल ने रजाई उसको दी। उस बुढ़िया की आँखें सजल हो उठी। उसने राहल को आशीर्वाद दिया। राहुल
ने सोचा – “माँ ठीक कहती है, गरीबों को कुछ देने से मन संतुष्ट हो जाता है।
प्रश्न 1.
राहुल ने रजाई बुढ़िया को दी। वह संतुष्ट होकर घर पहुंचा। तब राहुल और माँ के बीच का संभवित वार्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
माँ : राहुल तुम कहाँ गये थे?
राहुल : पासवाले मुहल्ले में।
माँ : क्यों?
राहुल : वह रजाई नाले में फेंकने केलिए।
माँ : बाप रे! तुम ने रजाई नाले में फेंक दी?
राहुल : नहीं माँ, मैं ने उसे बूढ़ी औरत को दिया।
माँ : बूढ़ी औरत को?
राहुल : हाँ, में नाले पार कर रहा था। तभी एक बूढ़ी औरत को देखा।
माँ : फिर क्या हुआ बेटा?
राहुल : सदी का मौसम है न। उसके पास ठीक कपड़े भी नहीं थे। मैं ने रजाई उसको दी। उसकी आँखों में आँसू आये।
माँ : शबाश बेटा। तुम ने बहुत अच्छा काम किया।
राहुल : अब मेरा मन बहुत संतुष्ट है।
माँ : ऐसा होता है बेटा। गरीबों को कुछ देने सेमन संतुष्ट रहता है।
राहुल : आप ठीक कहती है माँ। अब में खेलने जाऊँ?
माँ : ठीक है जाओ।
Activity 5
फिरोस का परिवार गरीब था। पिता मर गये थे। उसकी माँ और छोटी बहन थी। फिरोस घर-घर दियासलाई बेचकर जीवन बिताता था। एक दिन दियासलाई बेचने वह एक ठाकूर के बंगल में आया। ठाकूर की पत्नी ने दियासलाई खरीदी। परंतु उनके पास छुट्टे नहीं थे। फिरोस ने गली की दूकान से छुट्टा करके आने का वादा किया। ठाकूर की पत्नी ने उसपर विश्वास किया। फिरोस नहीं आया। ठाकुर की पत्नी ने सोचा- फिरोस ने धेखा दिया है। अगले दिन दोपहर को एक छोटी लड़की ठाकुर के बंगले में आई। वह फिरोस की बहन थी। बाकी पैसा लौटा देने को वह आयी थी। उसके मुँह से ठाकुर की पत्नी ने सुना कि छुट्टा लेने जाते समय किसी गाड़ी से टकराकर फिरोस को छोट लगी है। वह अस्पताल में है।
प्रश्न 1.
फिरोस के बहन और ठाकुर पत्नी के बीच की बातचीत कल्पना करके लिखें।
उत्तरः
बहन : मेमसाहब……. मेमसाहब
ठकुराइन: अरे कौन है? बहन में फिरोस की बहन हूँ।
ठकुराइन : फिरोस? वह कौन?
बहन : दो दिन पहले दियासलाई बेचने एक लड़का आया था न?
ठकुराइन : हाँ, वह मुझे धोखा देकर गये हैं। आज तक उसका कोई पता नहीं है। बहन वह अब अस्पताल में है मेमसाहब
ठकुराइन : अस्पताल में? उसे क्या हुआ?
बहन : एक दुर्घटना हुई थी।
ठकुराइन : कब?
बहन : छुट्टा लेने जाते समय किसी गाडी ने टकरा ली
ठकुराइन : बाप रे ! उसे कुछ हो गया कि नहीं?
बहन : भैया बरी तरह से घायल हो गया। अस्पताल में भर्ती की गयी।
ठकुराइन : अब वह कैसे है?
बहन : हाँ ठीक हो रहा है।
ठकुराइन: तुम क्यों आये हो? कोई खास बात? बहन में आप को बाकी पैसे लौटा देने आयी हैं।
ठकुराइनः पैसा तुम्हारे पास रखो। अस्पताल में कुछ खर्च होगा न? बहन नहीं मेमसाहब, पैसा आप ही रखें।
Activity 6
अब्रहाम लिंकन बड़े दयालू थे। बचपन से ही दूसरों का उपकार करना उनको पसंद था। एक दिन लिंकन अपने मित्रों के साथ टहल रहा था। थोड़ी दूर सड़क पर सवार को बेहोश पड़ा मिला। वह बहुत शराब पीकर बेहोश हो गये थे। लिंकन ने उसे घर ले जाकर नहलाया, कपड़े बदलवाये और खाना खिलाया। आगे चलकर लिंकन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति बने। अमेरिका के लोग पिता लिंकन कहकर याद करते हैं।
प्रश्न 1.
लिंकन ने सवार को घर ले जाकर उनकी सेवा-शुश्रूषा की। दूसरे दिन सवार और लिंकन के बीच होनेवाला वार्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
अब्रहाम लिंकन : अब आप कैसे हैं?
सवार : हाँ, ठीक हो गया हूँ। अब्रहाम
लिंकन : कल आप को क्या हुआ था?
सवार : बेहोश हो गया था। अब्रहाम
लिंकन : क्या आप बीमार है?
सवार : नहीं, में तो ज़्यादा शराब पी चुका था। अब्रहाम
लिंकन : अरे आप ने शराब पीने की आदत क्यों शुरु की है? आप के लिए कोई खास दुःख है क्या?
सवार : हाँ, में बहुत दुःखी हूँ, मेरी इकलौती बेटी थी। वह एक बस दुर्घटना में मर गयी थी। अब्रहाम
लिंकन : तो रोज यही दशा है?
सवार : बहुत ही दिनों में यही दशा है। अब्रहाम
लिंकन : बेटी तो मर गयी। उसपर आप अपना जीवन इस प्रकार बरबाद मत करें। सवार में कोशिश करता हूँ। हमेशा बेटी की याद मुझे सता रही है। में मरने की बात सोच रहा हूँ। अब्रहाम
लिंकन : ऐसा मत कहिए। ईश्वर ने हमारे लिए ज़िन्दगी दी है। उसे वापस लेना उन्ही का अधिकार है। आप ने मेरे लिए बहुत कष्ट उठाये हैं। में आप की बातें मानने की कोशिश करूँगा। अब्रहाम
लिंकन : भगवान की कृपा आप पर रहें।
Activity 7
आकाश के पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उसकी माँ बहुत निर्धन थी। जब आकाश पढ़ने केलिए गुरुकुल पहूँचा तो उसने गुरुदेव से कहा – “गुरुदेव मैं बहुत निर्धन बालक हूँ। मैं शिक्षा के साथ-साथ भोजन तथा वस्त्रों की व्यवस्था आप से ही लूँगा।” गुरुदेव ने उसके भोजन तथा वस्त्रों की व्यवस्था का भार संभाला। कुछ सालों के बाद शिक्षा पूर्ति करके जब छात्र वापस जा रहे थे तब आकाश बहुत उदास था। उसने गुरुदेव के पैर पकड लिए और रोते हुए बोला-गुरुदेव, आज मेरे पास आँसुओं के अतिरिक्त आप को देने के लिए कुछ नहीं। पर गुरुदक्षिण देने के लिए जिस दिन भी मेरे पास कुछ होगा, आप उसे ले लेंगे। इनकार नहीं करेंगे। आकाश की बात गुरु ने मान ली। एक दिन राजा सूरजसिंह के यहाँ यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में राजा ने गुरुदेव को भी आमंत्रित किया। कई विद्वानों के बीच आकाश भी थे। चर्चा में उसने अपनी विद्वत्ता और ज्ञान से दूसरों को हरा दिया। जब राजा ने आकाश से पूछ ली कि उसका गुरु कौन है तो आकाश ने अपने गुरु के चरण छूते हुए कहा – ‘महाराज यह ही मेरे गुरुदेव हूँ। इन्ही’ की कृपा से में आज विजयी हुआ हूँ। इसप्रकार गुरुदेव के लिए सच्ची गुरुदक्षिणा मिली।
प्रश्न 1.
सभी शिष्य दीक्षा प्राप्त करने के बाद घर वापस जा रहे थे। आकाश उदास होकर गुरु के सामने खडा रहा। तब गुरुदेव और आकाश के बीच का वार्तालाप लिखिए।
उत्तरः
गुरु : आकाश, तुम क्यों उदास हो?
आकाश : गुरु मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं।
गुरु : कोई बात नहीं। मुझे मालूम है।
आकाश : में आपके चरणों में आँसू समर्पित करता हूँ।
गुरु : ठीक है बेटा। में उसे स्वीकार करता हूँ। तुम अच्छी तरह अभ्यास करो और आगे निकलो।
आकाश : हाँ, यही मेरी भी अभिलाषा है। क्या मुझे ऐसा अवसर मिलेगा?
गुरु : जरूर। तुम्हारे सामने लंबा रास्ता पड़ा है। उस पर चल पडो, ठिकाने पर पहूँचो।
आकाश : गुरुजी मुझे आपसे एक वादा लेना है।
गुरु : वादा? क्या है बेटा?
आकाश : एक दिन जब मेरे पास कुछ आएगा तो आप ज़रूर उसे स्वीकार कर लेंगे। इनकार नहीं करेंगे।
गुरु : हाँ। जीते रहो बेटा।
Activity 8
एक बार श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच तर्क-वितर्क हए – ‘सबसे बड़ा दानी कोन’? कृष्ण ने कहा कर्ण । और अर्जुन के अनुसार बड़े भाई युधिष्ठिर थे। कुछ दिन बाद श्रीकृष्ण और अर्जुन ब्राहमण का वेष धारण करके युधिष्ठिर के यहाँ पहूंचे। उन्होंने वहाँ से एक मन चंदन की सुखी लकड़ियाँ माँगी। लेकिन कई दिनों से निरंतर वर्षा होने के कारण चंदन की सूखी लकड़ियाँ नहीं मिल सकीं। इसके बाद वे दोनों कर्ण के यहाँ गये। श्रीकृष्ण ने कर्ण से भी एक मन चंदन की सूखी लकड़ियाँ माँगी। कर्ण ने सोचा – ऐसी भयंकर वर्षा में चंदन की सूखी लकड़ियाँ आसानी से नहीं मिलेंगी। महल के सभी दरवाजे चंदन की लकडी से बने हुए थे। दरवाजों की लकड़ी सूखी थी। कर्ण ने बाण चलाकर दरवाज़े को तोडा, लकड़ियों का ढेर लगा दिया और ब्राहमणों को दिया। ब्राह्मण लोग लकड़ियाँ लेकर आ गये। श्रीकृष्ण बोले – “हे अर्जुन तुम ने देख लिया कर्ण का दान। युधिष्ठिर के महल के दरवाज़े भी चंदन की लकड़ी के बने हुए थे, परंतु उन्हें इसका विचार नहीं आया।”
प्रश्न 1.
ब्राहमण वेषधारी श्रीकृष्ण एवं अर्जुन परीक्षा लेने केलिए कर्ण के यहाँ गये। कर्ण से चन्दन की सूखी लकड़ियाँ माँगी। उस समय तीनों के बीच वहाँ होने वाला संभवित वार्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
ब्राह्मण : महात्मा कर्ण, नमस्कार।
कर्ण : नमस्कार ब्राहमण श्रेष्ठ। आप दोनों पधारिए।
ब्राह्मण 1: आप की स्वीकृति के लिए धन्यवाद।
कर्ण : आप दोनों बैठिए। मैं आप के लिए कुछ खाने लाता हूँ।
ब्राह्मण 2 : नहीं बेटा, हम अब भूखे नहीं है।
कर्ण : ब्राह्मण जी, कोई खास बात?
ब्राह्मण 1 : हाँ, हम आपसे कुछ माँगने आये हैं।
कर्ण : कहिए, आप को क्या चाहिए?
ब्राह्मण 2 : महाराज, हमें सूखी चंदन की लकड़ियाँ चाहिए।
कर्ण : इस घोर वर्षा में सूखी चंदन की लकड़ी?
ब्राह्मण 1 : अगर आपको इसपर कोई तकलीफ़ होतो मत देना।
कर्ण : इसमें तकलीफ़ की कोई बात नहीं। ब्राह्मण श्रेष्ठों की वचनों का तिरस्कार में कैसे करूँ?
ब्राह्मण 2 : हो सकें तो आप जल्दी ही जल्दी इसका प्रबन्ध करें।
कर्ण : (कुछ सोचकर) ठीक है, मैं अभी लाता हूँ। (कुछ देर बाद) : लीजिए, आप के लिए ये चंदन की लकड़ियाँ। मैं ने दरवाज़े तोडकर ले आया हूँ।
ब्राह्मण 1 : हमारे लिए आप बहुत कष्ट उठाये।
धन्यवाद।
Activity 9
उन दिनों अमृतपुरी में एक युवक चोरी और लूटपाट करके लोगों को बहुत परेशान करता था। एक दिन वह एक साधु को लूटना चाहता था तो साधु ने उसे समझाया कि दूसरों की चोरी करना बुरी बात है। लेकिन उसने साधु की एक बात भी नहीं मानी। तब साधु ने उससे कहा कि तुम घर जाकर अपने घरवालों से पूछो कि मैं जो चोरी और लूटपाट करता हूँ, अगर भगवान मुझे दण्ड देंगे तो आप लोग भी उसमें भागीदार होंगे या नहीं। चोर ने घर जाकर अपने घरवालों से पूछा कि मैं तुम्हारे लिए ही चोरी और लूटपाट करता हूँ। अगर भगवान मुझे कोई दंड देंगे, तो आप उस दण्ड में भागीदार होंगे। तब चोर के घरवालों ने जवाब दिया कि भगवान जो दण्ड आपको देंगे, वह आपको स्वयं ही भोगना पडेगा। हम न किसी को सताते हैं और नही किसी की चोरी करते हैं तो हम क्यों दण्ड भोगेंगे। युवक साधु के पास लौट आया और वह साधु के चरणों पर गिर पड़ा। उसने साधु से माफी माँगकर कहा कि आप ने हमारी आँखें खोल दीं। साधु ने उसे एक नयी आशा और नए विश्वास के साथ बिदा दी।
प्रश्न 1.
युवक और साधु के बीच का संभावित वार्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
साधु : दूसरों को चोरी करना बुरी बात है। क्या तुम यह जानते हो?
चोर : वह तो वैरी बात नहीं है। मैं अपना और परिवार वालों का जीवन बिताने के लिए चोरी करता हूँ।
साधु : तो तुम घर जाकर परिवारवालों से पूछो कि तुम जो चोरी और लूटपाट करते हो अगर भगवान
तुम्हें कोई दण्ड देते तो तुम्हारे घरवाले लोग भी उसमें भागीदार होंगे या नहीं?
(यह सुनकर चोर घर जाकर अपने घरवालों से बातचीत करने के बाद लौट आया)
चोर : जी, मुझे माफी दें।
साधु : क्या…… क्या हुआ? तुम्हारे घरवाले क्या कहे?
चोर : आपने जो कुछ कहा, उसके बारे में मैं घरवालों से पूछने पर उन्होंने जवाब दिया कि, भगवान मुझे जो दण्ड देंगे, वह मुझे ही स्वयं भोगना पड़ेगा।
साधु : यही में भी तुमसे कहना चाहता हूँ। आज से चोरी और लूटपाट छोड़ दे।
चोर : ठीक है। मैं आप की बातों को मानने के लिए तैयार हूँ।
साधु : नयी आशा एवं नये विश्वास के साथ आगे बढ़ो। ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें।
Activity 10
बारह साल का गोपाल बहुत गरीब था। एक दिन वह जंगल में बैठकर धन कमाने का उपाय सोचने लगा। अचानक उनके सामने वनदेवता प्रत्यक्ष हुए। वनदेवता ने रामू से उदासी का कारण पूछा। “मैं बहुत गरीब हूँ, इसलिए उदास हूँ” – यही उनका उत्तर था। वनदेवता ने कहा – “मैं तुम्हें एक लाख रुपये दे दूंगा। लेकिन इसके बदले मुझे तुम्हारी आँखें चाहिए। यह गोपाल के लिए मंजूर नहीं था। फिर वनदेवता मुस्कुराते हुए बोले – “बेटा तुम्हारे शरीर का हर अंग कीमती है। फिर तुम ने क्यों अपने को गरीब कहा।” गोपाल को बात समझ में आयी। उस दिन से वह अपने को गरीब नहीं माना।
प्रश्न 1.
वनदेवता की बातें से गोपाल की आँखें खुल गयी। घर पहूँचकर वह अपनी माँ से इसके बारे में कहने
लगा। तब गोपाल और माँ के बीच का वार्तालाप तैयार करें।
उत्तरः
गोपाल : माँ…. माँ अरे ओ…….. माँ
माँ : अरे आती हूँ। तुम क्यों चिल्ला रहे हो?
गोपाल : माँ एक अजीब घटना हुई।
माँ : क्या बात है बेटा?
गोपाल : आज में जंगल में बैठे कुछ सोच रहा था। अचानक बनदेवता मेरे सामने प्रत्यक्ष हुआ।
माँ : वनदेवता? क्या तुम सपना देख रहे हो?
गोपाल : नहीं माँ, मैं सच बोल रहा हूँ।
माँ : फिर क्या हुआ?
गोपाल : उसने मुझसे अपनी उदासी का कारण पूछा।
माँ : फिर?
गोपाल : मैं अपने को धनी बनाने के लिए कहा।
माँ : वनदेवता ने तुम्हें कोई इनाम दिया?
गोपाल : नहीं माँ, वे मुझसे एक लाख रुपये के लिए आँखें माँगी।
माँ : क्या है बेटा…….. आँखें?
गोपाल : इसप्रकार वे मुझसे अपने हाथ, पाँव, कान तथा जीभ भी माँगे।
माँ : अरे तुम कैसे बच गये?
गोपाल : मैं ने ये सब इनकार कर दिये। यह कैसे कर सकता हूँ माँ?
माँ : शरीर के अंग धन से भी कीमती है बेटा।
गोपाल : हाँ माँ, वनदेवता ने भी मुझे यही सबक सिखाया। मैं आज से मेहनत करके जीवन
बिताऊँगा।