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ICSE Hindi Question Paper 2014 Solved for Class 10

March 12, 2023 by Veerendra

ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2014 Solved for Class 10

  • Answers to this Paper must be written on the paper provided separately.
  • You will not be allowed to write during the first 15 minutes.
  • This time is to be spent in reading the Question Paper.
  • The time given at the head of this Paper is the time allowed for writing the answers.
  • This paper comprises of two Sections – Section A and Section B.
  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics: [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए –
(i) भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति का वर्णन करते हुए पाश्चात्य संस्कृति की कुछ अपनाने योग्य बातों पर प्रकाश डालिए।
(ii) आज खेलों में फैला भ्रष्टाचार एक नया ही रूप ले रहा है, विषय को स्पष्ट करते हुए, अपने प्रिय खेल का वर्णन कीजिए तथा जीवन में खेलों की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
(iii) अपने जीवन में घटी उस घटना का वर्णन कीजिये जिसे याद करके, आप आज भी हँसे बिना नहीं रहते तथा इससे आपको क्या लाभ मिलता है।
(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका आधार हो –
“जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2014 Solved for Class 10
Answer:
(i) “सम्पूर्ण देशों से अधिक जिस देश का उत्कर्ष है, वह देश मेरा देश है, वह देश भारतवर्ष है।”
हमारे देश की संस्कृति अपने आप में अनूठी है। भारतभूमि से मानव मंगल कामना का स्वर गूंजा है और मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा भारतीयों का ध्येय रहा है। भारतीय संस्कृति, भारतीय वेद, ऋचाएँ अत्यन्त प्राचीन हैं। इसमें कुछ ऐसी विशेषता है जो आज भी इसे महत्वपूर्ण बनाए हुए है। इस वैज्ञानिक युग में भी हन भारतीय आस्थावादी हैं और धर्म हमारे जीवन का आधार है। इतना ही नहीं भारत में संस्कृति का आधार भौतिक सुख नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति को माना जाता रहा है। .. जीवात्मा को परमात्मा का अंश मानकर आत्मज्ञान पर बल दिया जाता है। वास्तविक सुख-शांति संतोष, परोपकार आदि गुणों को अपनाने पर प्राप्त होते हैं। आत्मा के सुख के सम्मुख सभी सुख नगण्य हैं। इन्हीं सिद्धान्तों के कारण ही भारत को विश्वगुरु कहा गया। ..पिछले कुछ वर्षों में भारत की सभ्यता संस्कृति परिवर्तित हुई है।

अपनी प्राचीन संस्कृति को निर्जीव मानकर भारतीय जनता ने अपने आपको भुलावे में डाल लिया है और अपने उन आदर्शों को खोते जा रहे हैं जिनके कारण भारतीय लोगों का प्रभाव संसार में अद्वितीय था। आज के युग में बाहरी दिखावे का महत्व इतना अधिक हो गया है कि मनुष्य के जीवन में बनावट आ गई है, स्वार्थ व अविश्वास बढ़ रहा है। वर्तमान में भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और भारत वैज्ञानिक युग में भौतिक सिद्धान्तों की प्राप्ति के लिए उसी दृष्टिकोण से सोचने लगा है। यह पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का भारतीय सभ्यतासंस्कृति परै एक सीमा तक अच्छा प्रभाव समझा जा सकता है। आज का भारतीय नागरिक स्वतन्त्रता को जन्मसिद्ध अधिकार मानकर इसकी उपेक्षा कर रहा है जो कि हमें पाश्चात्य देशों में नहीं मिलता। वहाँ लोग अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों के प्रति भी निष्ठावान रहते हैं। हमारा कर्तव्य है हम स्त्री-पुरुष के उस भेदभाव को मिटाएँ जो सभ्यता-संस्कृति के आवरण में पोषित हो रहे हैं।

आज हम पश्चिमी फैशन की होड़ में कहीं के नहीं रहे। हमें बाहरी पाश्चात्यता अपनाने से पहले विचारों की आधुनिकता लानी होगी। ऐसी दौड़ के घोड़े बीच राह में फिसलते देखे जा सकते हैं। . आज शिक्षा के क्षेत्र में कोरी व्यावसायिकता जोर लगा रही है। माता-पिता बच्चों पर अपनी आकांक्षायें थोप रहे हैं। बच्चों की रुचि क लगान इतने मायने नहीं रखते ऐसी परिस्थिति में हमें पाश्चात्य संस्कृति व सभ्यता में जीवन जीने बखिों से सीख लेनी चाहिए। विशेषकर राजनैतिक क्षेत्र में हम अगर यूरोपीय देशों को गुरु मानें तो हमारे देश का अष्टाचार जड़ से समाप्त हो जाए।

झार-पात, संस्कृति का मुख्य रूप होता है। भारतीयों की आदतों में भी बहुत अन्तर देखा जा सकता है। पाश्चात्य संसाव का अंधानुकरण करते हुए हम अपने देश की जलवायु के अनुरूप भोजन प्रणाली को अपनाएँ। कुछ रूपों में तो हमारी संस्कृति जो विदेशों में भी सराही जाती है उसका अपने देश में ह्यस हो रहा है। आज विज्ञान के युग में प्राचीन सभ्यता के रूप रंग को नयी रंगत देकर अपनाना आवश्यक भी हो गया है तभी देश उन्नति करेगा तथा सुखशान्ति के समृद्धि से परिपूरित हो सकेगा। हमें धारा के शाश्वत प्रवाह में बह कर परिवर्तन लाने में नहीं हिचकना चाहिए।

खेलों में भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार का तात्पर्य केवल रिश्वत ही नहीं है अपितु अनुचित लाभ पहुंचाना, कर्तव्य के प्रति उदासीनता, साधनों का अनुचित प्रयोग भी भ्रष्टचार की परिधि में आते हैं। इस दृष्टिकोण से हम आंकलन करें तो खेलों में भी भ्रष्टाचार हमें एक नये रूप में दिखाई देता है। कहीं अधिकारों का अनुचित प्रयोग कर योग्य के स्थान पर अयोग्य को अवसर, कहीं कामनवेल्थ घोटाले के रूप में, कहीं मैच फिक्सिंग जैसा निन्दनीय कृत्य आज हमारे सामने प्रत्यक्ष उजागर हुए हैं।

कहीं-कहीं हम देखते हैं कि खिलाड़ियों द्वारा अपने पद की गरिमा को त्याग कर धन-लोभ में मैच फिक्सिंग जैसे कृत्य में सहभागिता दी जा रही है। इससे खेलप्रेमियों को गहरा आघात लगता है व समाज में वह निन्दा के शिकार बनते हैं। खेल एक स्वस्थ्य मनं से खेला जाने वाला रूप पाता रहे इसके लिए आवश्यकता है समाज में इसके प्रति स्वस्थ मनोवृत्ति का प्रसार किया जाए व स्वाभिमानी आत्मसम्मानी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिले।

हर व्यक्ति की अपनी आकांक्षाएँ, अपनी रुचियाँ और अपनी अलग इच्छाएँ हैं। किसी की पढ़ाई में, किसी की देशाटन में, किसी की नेतागीरी में तो किसी की पूजा-भक्ति में, किसी की दौड़-व्यायाम में, किसी की गृहकार्य में रुचि होती है। इन इच्छाओं के भीतर भी कई प्रकार की अपनी-अपनी इच्छाएँ प्रबल होती हैं। यदि किसी की खेल में रुचि है तो वह किसी खास खेल में ही रुचि रखता होगा। इसी प्रकार मेरी भी रुचि क्रिकेट में है। क्रिकेट मेरा प्रिय खेल है।

क्रिकेट का आरम्भ सर्वप्रथम यूरोप में विशेषकर इंग्लैंड में हुआ। भारत में भी यहाँ के राजाओं, नवाबों और राजकुमारों ने ही इस खेल को सर्वप्रथम अपनाया। अब तो यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि विद्यालयों और महाविद्यालयों, नगरों में जगह-जगह सामान्य लोग भी इसमें रुचि ले रहे हैं।

क्रिकेट का खेल एक बहुत बड़े अण्डाकार मैदार में खेला जाता है। इसमें एक निश्चित दूरी पर दोनों ओर तीनतीन विकेट भूमि पर गाड़ दिये जाते हैं। खेल विकेट के दोनों ओर खेला जाता है। यह खेल दो पार्टियों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक पार्टी में 11-11 खिलाड़ी होते हैं। इस खेल को खिलाने वाले दो निर्णायक होते हैं, जिन्हें इंग्लिश में ‘अम्पायर’ कहते हैं। खेल प्रारम्भ होने से पूर्व दोनों दलों के कप्तान खेल के मैदान में आते हैं। वहाँ एक सिक्का उछाल कर टॉस किया जाता है। टॉस जीतने वाला पहले खेलता है।

खेल प्रारम्भ होने पर एक ओर गेंद फेंकने वाला, जिसे ‘बालर’ कहते हैं, एक निश्चित रेखा के पास आकर गेंद फेंकता है। दूसरी ओर विकेट के पास खड़ा बल्लेबाज उस गेंद को अपने बल्ले से फेंकता है। उधर गेंद फेंकने वाले दौड़कर गेंद पकड़ना चाहते हैं, तो बल्लेबाज एक विकेट से दूसरी विकेट तक दौड़ते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है। खिलाड़ी गेंद को बल्ले से मारकर गेंद को उछालकर मैदान से बाहर कर देता है और विपक्षी उसे पकड़ नहीं पाते तो उसे चौका या छक्का मान लिया जाता है। खेलने के पश्चात् जिस टीम के रनों की संख्या अधिक होती है, उस टीम को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

विद्यार्थी जीवन में खेलों का बड़ा महत्त्व है। पुस्तकों में लगा रहने के बाद विद्यार्थी थका-मांदा खेल के मैदान में खेलने चला जाता है। खेलने से उसकी थकावट दूर हो जाती है, वह अपने मन में चुस्ती-फुर्ती तथा ताजगी महसूस करता है। मानव जीवन में सफलता के लिये मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शक्ति का विकास आवश्यक है। स्वस्थ, प्रसन्न-चित्त और फुर्तीला रहने के लिये शारीरिक शक्ति का विकास जरूरी है। इसके द्वारा ही मानसिक तथा आत्मिक विकास सम्भव है। शरीर का विकास खेलकूद पर ही निर्भर करता है। शरीर तथा मन में नयी ताजगी, स्फूर्ति और चुस्ती आ जाती है। मन में अधिक कार्य करने की क्षमता पैदा हो जाती है।

खेल को खिलाड़ी की आत्मा कहा गया है। खेल की भावना इस आत्मा का श्रृंगार है। प्रत्येक खिलाड़ी को अपनी पुनीत भावना पर नाज होता है। यह भावना खिलाड़ी को पारस्परिक सहयोग, संगठन, अनुशासन एवं सहनशीलता की शिक्षा देती है। आवश्यकता पड़ने पर अपने शत्रुओं पर संगठित होकर प्रबल आक्रमण कर सकना तथा मुश्किलों में धैर्यपूर्वक आत्म-रक्षा करना खेलों के द्वारा भी भली-भाँति सीख लेते हैं।

खेलते समय सभी खिलाड़ियों को खेल के नियमों का पालन करना होता है। इस प्रकार नियम में बंधकर खेलने से छात्रों में अनुशासनप्रियता जाग्रत होती है, जो जीवन में सफल होने की पहली सीढ़ी है। अनुशासित व्यक्ति समाज और राष्ट्र की तेजी से प्रगति करते हैं और शीघ्र ही सम्पन्नता के शिखर पर पहुँचते हैं। अनुशासन सिखाने, स्वास्थ्य और मनोरंजन का अच्छा साधन होने के कारण आज खेलों को शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जा रहा है।

भोजन, हवा और पानी के बिना जैसे जीवन नहीं चलता, ठीक उसी प्रकार खेल और व्यायाम के बिना जीवन में जड़ता आ जाती है। खेल मनुष्य में साहस, उत्साह, उमंग और धैर्य उत्पन्न करते हैं। खिलाड़ी अपनी असफलता से निराश होकर नहीं बैठते। वह अपनी पराजय को भी हँसकर स्वीकार करते हैं, उससे सबक सीखते हैं और पुनः विजय प्राप्त करने के लिये निरन्तर संघर्ष करते रहते हैं। खिलाड़ी क्षुब्ध होना नहीं जानता, पराजय उसके लिये बाधक नहीं, बल्कि चुनौती होती है। इससे उसके संकल्प में दृढ़ता आती है।

भारत में खेलों को अब हीनता की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता, न देखा जाना चाहिये। क्योंकि पहले लोगों में यह धारणा थी कि जिस बालक का ध्यान खेलों में लग जाता है, वह बालक बिगड़ जाता है। इसलिये पहले सभी माता-पिता अपने बच्चों को खेल से दूर रखते थे। एक कहावत थी कि “खेलोगे कूदोगे हो जाओगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे को बनोगे नवाब” यह उक्ति आज बदल गयी है।

अब केन्द्रीय सरकार ने खेलों को गम्भीरता से लिया है। अधिकतर राज्यों में शारीरिक शिक्षा को विद्यालयों में अनिवार्य विषय घोषित कर दिया गया है। खेलों और विभिन्न प्रकार के व्यायामों का सही ढंग से प्रशिक्षण देने के लिये सभी विद्यालयों में खेल-शिक्षकों की नियुक्ति होती है। अत: आज के वर्तमान युग में हमारे जीवन में शिक्षा के साथ खेलों का भी बहुत महत्त्व है। इसलिये सभी विद्यार्थियों को खेलों में बढ़-चढ़कर अवश्य भाग लेना चाहिये।

(iii) हास्य-विनोदपूर्ण घटना
समय और परिस्थितियों ने मानव-जीवन को नर्क बना दिया है। महत्वाकांक्षाओं ने उसे मशीन बनाकर उसके तन से रस या आनन्द की अनुभूति को सदैव के लिए तिरोहित कर दिया है। प्यार, करुणा और सहानुभूति की खोज में शून्य में ताकती आँखें, बुझे से चेहरे, कृशप्राय शरीर तथा जवानी में ही बुढ़ापे से प्रतिबिम्बित युवक! यह है आज के मानव का चित्र। इसी कुण्ठा, तनाव और निराशा से मुक्ति का एकमात्र साधन है, हास्य (हँसी)। यह एक ऐसा टॉनिक है जो रोगी को स्वस्थ तथा बुझे चेहरों पर प्रकाश और आत्म-विश्वास की रेखा पैदा कर सकता है। किसी कवि ने कहा है-“हँसो-हँसो भई हँसो, हँसते रहने से चेहरे पर आत्म-विश्वास की चमक और आँखों में नई आशा की किरण जन्म लेती हैं।”

मानव-जीवन सुख-दुःख, हानि-लाभ, यश-अपयश आदि से पूर्ण है। जन्म से मृत्यु तक संघर्षपूर्ण इस मानवजीवन में अनेक घटनाएं घटित होती रहती हैं। ये दुःखद और सुखद दोनों प्रकार की होती हैं। अधिकतर घटनाओं को मानव भूल जाता है, किन्तु कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें समय की आँधी और तूफान भी विस्मृत नहीं कर पाते। इस प्रकार दुःखद घटनाएँ यदि विषाद और निराशा की सृष्टि करती हैं, तो सुखद घटनाएँ मन को एक अद्भुत आह्लाद से भर देती हैं। ऐसी एक घटना का वर्णन मैं यहाँ कर रहा हूँ।

घटना आज से लगभग 20 वर्ष पुरानी है। मार्च का अन्तिम दिन था। विद्यालय का अवकाश था। मैं कुछ उदास स्थिति में घर में बैठा था। अचानक डाकिया मेरे नाम का एक पत्र द्वार पर लगी पत्र-पेटिका (Letter box) में डाल गया। उत्सुकतावश पत्र, पेटिका से बाहर निकालकर पढ़ा। दूसरे दिन जन्म-दिवस समारोह का निमन्त्रण था। आग्रह कुछ अधिक ही था और दूसरे दिन शाम का समय फालतू था। अतः कार्यक्रम बनाकर शाम के समय एक बड़ा-सा उपहार लेकर हम उनके घर पहुंचे। यहाँ सब कुछ सामान्य-सा ही दिखायी दिया। अब पहुँच तो गये ही थे। विचार किया कि जो होगा सो देखा जायेगा। उत्सुकता दबाये इन्तजार करने लगे। परिवार के सभी सदस्य अचानक मेरे आगमन से कुछ आश्चर्यचकित थे, क्योंकि अनेक बार आग्रह किये जाने पर भी मैं वहाँ नहीं जाता था।

औपचारिकता के बाद भी जब मुझे जन्म-दिवस मनाये जाने के कोई लक्षणे न दिखाई दिये तो मैंने पूछा कि आज (उस दिन) किसी (नाम लेकर) के जन्म-दिवस मनाये जाने की सूचना मिली थी। जिसके कोई लक्षण अथवा तैयारी नहीं है। तब जाकर बात खुली। उसी समय सम्बन्धी की पुत्री चाय के साथ मिठाई और नमकीन आदि लेकर आयी। मेरे आग्रह पर उस बालिका के पिताजी भी शामिल हो गये। मैंने ध्यान दिया कि वे कुछ अधिक कृत्रिम गम्भीरता का आवरण लगाकर आचरण कर रहे थे। उनकी माँ के लिए कहा गया कि वे किसी सहेली से मिलने गयी हैं। मुझे यह कुछ बनावटी तो मालूम हुआ किन्तु शान्त रहा।

चाय का पहले यूंट लेते ही मन कड़वाहट और कसैलेपन से भर गया। वे पिता-पुत्री मेरे चेहरे के भाव बड़े ध्यान से पढ़ रहे थे। कप रखकर मैंने बिस्कुट उठाया, किन्तु यह क्या ? वह पत्थर के समान कठोर। अब तक मैं भी सब कुछ समझकर नासमझ बनने का अभिनय कर रहा था। अन्त में मैने विदा माँगी। मैंने उपहार उस बालिका को भेंट किया और चलने वाला था कि बालिका की माताजी मुस्कराती हुई सामने आयीं। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मुझे किस प्रकार मूर्ख बनाया गया है, तो वे बच्चों तथा उनके पापा पर बिगड़ीं। तभी उपहार का पैकिट खोलने पर उसमें असीमित तहों के बाद पुर्जा था। ऐप्रिल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया। अब पासा पलट गया। मुझे मूर्ख बनाने वाले स्वयं मूर्ख बन गये। बाद में अच्छे नाश्ते और गप्पों के बाद वापस लौटा। मैं यह घटना आज भी नहीं भुला पाता हूँ।

(iv) ‘जाको राखे साइयाँ, मार सके नहिं कोय’.
बस की रफ्तार कोई तेज नहीं थी। कारण स्पष्ट था कि सड़क ऊबड़-खाबड़ थी और बस की रोशनी सिर्फ अन्धेरै को ही चीर रही थी। यह सड़क के गड्ढों को पूर्ण रूप से दिखाने में असमर्थ थी। मैं और मेरा मित्र अनुराग एक छोटी सीट पर बैठे थे। मैंने घड़ी की ओर देखा तो अभी रात के नौ बजे थे और अभी तीन घण्टे का सफर बाकी था। यात्री करीब 40 रहे होंगे जिनमें 4 स्त्रियाँ और 5 बच्चे थे। एक नव-विवाहिता अपने पति के साथ बैठी थी। कई यात्री सोने का प्रयत्न कर रहे थे, लेकिन क्षण-क्षण लगने वाले झटके उनके प्रयास को विफल कर रहे थे। रास्ता बीहड़ और भयानक था। डर की आशंका से एक सेठ अपने बक्से को बार-बार सम्भाल लेता था। एक नौजवान अपने गठीले व कसरती बदन से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रहा था।

ऐसे वीर, बेफिक्र नौजवानों से भी भारत की शान है’ मैंने . अपने मन में सोचा। चिन्ता से कोसों दूर उस नौजवान को अपने बलिष्ठ शरीर पर किंचित भी गर्व नहीं था। मैं अपने मित्र के साथ गपशप करने में लग गया। कोई सिगरेट का कश खींचने लगा तो कोई बस के अन्दर के धीमे प्रकाश में उपन्यास पढ़ने लगा। इस प्रकार सभी किसी न किसी प्रकार व्यस्त हो चले थे कि अचानक बस के ब्रेक बड़ी जोर से लगे और सभी के सिर धड़ाम से सीट के आगे-पीछे लगे। सभी एकदम भौंचक्के रह गये। भय ने सबको बाँध लिया।

भय मिश्रित चीख करीब-करीब आधे लोगों के मुंह से निकल गई। रात के समय जंगल में बस एकदम रुकना दिल को कँपा देने वाली घटना है। दिल को हाथ से थामे सिमटे हुए सभी लोग भय से थर-थर काँपने लगे। किसी ने बस का दरवाजा खोला और बन्दूक का फायर किया। अब तो सभी समझ चुके थे कि वे डाकुओं के हाथों लूटे जाने हैं। उस सेठ का तो बुरा हाल था। बच्चों और औरतों की सिसकियाँ बैंध गई। मैं और मेरा मित्र दोनों डर के मारे अपनी सीट पर बैठे रहे। मैंने दोनों की घड़ियाँ और अपने गले की एक तोले की जंजीर सीट के नीचे फेंक दी। एक क्षण में ही बड़ी-बड़ी मूंछों और बालों वाली भयानक आकृति बन्दूक लिए बस के अन्दर आ गई।

सभी डर के मारे अपनी-अपनी सीटों पर सिमट गये। “खबरदार! जो कोई अपनी सीट से हिला तो खुपड़िया उड़ा दूंगा।” गरज कर उसने कहा। यह सुनना था कि औरतों की सिसकियाँ भी बन्द हो गयीं और बच्चे सीटों के नीचे घुस गये। अब उसने सबकी लूट शुरू की। जैसे ही उस डाकू ने नव-विवाहिता के जेवर खींचना शुरू किया तो उस स्त्री की चीत्कार लोगों के हृदय को चीर गयी। सामने बैठे उस स्वस्थ युवक से न रहा गया और वह उस डाकू पर भूखे बाघ की तरह टूट पड़ा। एक ही हाथ के वार में उसे चारों खाने चित्त कर दिया। इधर मेरे मित्र ने उसकी बन्दूक हथिया ली। तुरन्त ही उस युवक ने सेठ के हाथ से बेंत खींचकर जोर से डाकू की गंजी खोपड़ी पर दे मारी। ‘हाय’ कहकर वह सीमों के बीच में गिर पड़ा।

यह सब कार्य कुछ क्षण में ही हो गया। जब तक बाहर के डाकू अन्दर घुसते एक व्यक्ति ने अन्दर से बस का दरवाजा बन्द कर लिया और सीटों पर लेट गये। बाहर से एक डाकू ने दो फायर किये और दरवाजा खोलने का प्रयास करने लगा। तभी उस वीर नौजवान ने बन्दूक मेरे मित्र के हाथ से लेकर घोड़ा दबा दिया जिससे डाकुओं का एक साथी धराशायी हो गया। अब तो उनमें भगदड़ मच गई। हमने देखा कि वे चार आदमी थे। भाग्य से सामने तीन-चार आते हुए ट्रकों की लाइट दिखाई पड़ी। मौका पाकर ड्राइवर ने लाइट बन्द कर बस स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी। उन दो डाकुओं ने अन्धाधुन्ध फायर करना शुरू कर दिया। अचानक एक गोली उस नौजवान के बाँह को ऊपर से छीलता हुई निकल गई। लेकिन उसने उफ तक न की और जमकर उस डाकू के ऊपर बैठा रहा। नीचे से डाकू निकलने का असफल प्रयास कर रहा था। पर उस सिंह

से उसकी पेश नहीं खा रही थी। मैंने अपना साफ रुमाल उसकी बाँह पर बाँध दिया। सभी लोग उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। वास्तव में उसी बहादुर नौजवान ने सबको लुटने से बचा लिया और सबकी जान बचाई। ड्राइवर ने इशारे से उस ओर जाते हुए ट्रकों को सावधान किया। वे वहीं रुककर अन्य ट्रकों का इन्तजार करने लगे। ड्राइवर ने बस की रफ्तार बढ़ाई और एटा पहुँचकर पुलिस थाने पर जाकर रिपोर्ट लिखाई। यदि वह गोली जरा-सी हटकर लगती तो उस नौजवान की मृत्यु हो गई होती। सच ही कहा है

“जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोय।
बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय।”

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र में पानी की समस्या से जूझती महिलाएँ हमें दिखाई दे रही हैं। महानगरों, शहरों, गाँवों सभी जगह ये दृष्टिगोचर होती है। इस चित्र में महिलाएँ टूटे हैण्ड पम्प से कैसे पॉलीथीन बाँध कर पानी भर रही हैं। पानी की भयावह समस्या से जूझते जनसामान्य के सामने ऐसी जुगाड़ बिठाकर काम चलाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह जाता। ये समस्या प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है हमारे देश के शासन-प्रशासन पर जहाँ आम आदमी अपनी जरूरत पूरी करने के लिए कितनी तकलीफ उठाता है।

विश्व की सतह का कहने को सत्तर प्रतिशत भाग पानी से भरा पड़ा है, लेकिन इसका 2.5 प्रतिशत भाग ही पीने योग्य है। शेष पानी खारा है। इस 2.5 प्रतिशत स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग बर्फीले स्थानों पर जमा हुआ है, जबकि शेष भूमि में नमी के रूप में तथा गहरे जलाशयों में है जिसका प्रयोग कर पाना इतना आसान कार्य नहीं है। इस प्रकार मात्र एक प्रतिशत से भी कम पानी मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध है। पेयजल की कमी से कई क्षेत्रों में अब तनाव उत्पन्न होने लगा है। एक अनुमान के अनुसार अगले दो दशकों में विकासशील देशों की बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न उत्पादन के लिए 17 प्रतिशत अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होगी। पेयजल से जूझ रहे 30 प्रतिशत देशों को इस शताब्दी में पानी के जबरदस्त संकट का सामना करना पड़ सकता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2025 तक संसार की दो तिहाई आबादी उन देशों में रहने के लिए मजबूर होगी जहाँ पानी की कमी या बहुत अधिक कमी का सामना करना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी विश्व की जल विकास रिपोर्ट में हमारे देश भारत को सबसे प्रदूषित पेयजल की आपूर्ति वाला देश कहा गया है। पानी की गुणवत्ता के आधार पर भारत का विश्व में बारहवां स्थान है। सबसे दुखद यह है कि सरकार द्वारा इस दिशा में वांछित प्रयासों एवं इच्छा शक्ति का अभाव दृष्टिगोचर होता है।

एशिया में बहने वाली नदियाँ घरेलू कचरे एवं औद्योगिक कचरे के कारण सबसे अधिक प्रदूषित हैं। विकासशील देशों की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषित जल के सेवन से फैलने वाले रोगों से ग्रसित है। समुचित सफाई व्यवस्था एवं स्वच्छ पेयजल व्यवस्था कराकर ऐसी मौतों को बहुत हद तक रोका जा सकता है। विकासशील देशों में स्वच्छ जल का आधा भाग विभिन्न कारणों से बर्बाद हो जाता है। आज भी गाँवों में पानी भर कर लाने की जिम्मेदारी अधिकतर महिलाओं की होती है जिन्हें औसतन छ: किलोमीटर तक चलना होता है। राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छा शक्ति के अभाव एवं अदूरदर्शिता के कारण भविष्य में जल संकट और गहरा,सकता है। बढ़ते प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि तथा वायुमंडल में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण प्राकृतिक जल स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं। वाशिंगटन स्थित वर्ल्ड वाच संस्थान का अनुमान है कि भारत के केवल 42 प्रतिशत लोगों को ही स्वच्छ पेयजल मयस्सर हो पाता है। हमारे देश में अधिक शिशु मृत्यु दर होने के लिए दूषित पेयजल बहुत हद तक जिम्मेदार है।

श्वास रोग, आँखों के रोग, रक्त संचार में गड़बड़ी, लकवा आदि दूषित जल के ही परिणाम हैं। यही नहीं, दूषित पानी का खेतों में सिंचाई के रूप में प्रयोग करने से दूषित तत्व अनाज एवं सब्जियों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँचकर हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए- [7]
(i) आप किसी स्थान विशेष की यात्रा करना चाहते हैं। उस स्थान की जानकारी प्राप्त करने के लिए, उस क्षेत्र के पर्यटन विभाग के अधिकारी को पत्र लिख कर पूछताछ कीजिये।
(ii) आपका भाई अपना अधिकांश समय मोबाइल फोन के उपयोग में बिताता है। मोबाइल फोन के अधिक उपयोग करने से होने वाली हानियों का उल्लेख करते हुए, उसे पत्र लिखिए।
Answer:
(i) पर्यटन विभाग के अधिकारी को पत्र
सेवा में,
मुख्य पर्यटन अधिकारी
पर्यटन विभाग जयपुर,
राजस्थान।
विषय: स्थान विशेष की जानकारी प्राप्त करने हेतु पत्र।
महोदय,
मैं असीम निगम आगरा क्षेत्र का निवासी हूँ। मेरा चचेरा भाई व मेरी मौसी का परिवार अमेरिका से भारत भ्रमण के उद्देश्य से हमारे यहाँ आए हुए हैं। आगरा भ्रमण के उपरान्त वह जयपुर भ्रमण हेतु जाने के इच्छुक हैं।
मेरा आपसे अनुरोध है कि आप राजस्थान पर्यटन विभाग के अन्तर्गत, जयपुर क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले सभी भ्रमणीय क्षेत्रों तथा जयपुर में रुकने हेतु उपयुक्त राजस्थान पर्यटन विभाग के गैस्ट हाऊसों तथा आवा-गमन के साधनों की जानकारी हमें उपलब्ध करा सकें तो आपका बहुत सहयोग होगा। आपकी इस सहायता हेतु आपको धन्यवाद।

प्रार्थी
(असीम निगम)
5/10, कमला नगर,
आगरा।

दिनांक: 01.04.2014

पत्र भेजने का पता
सेवा में,
श्रीमान मुख्याधिकारी
पर्यटन विभाग, जयपुर
राजस्थान।

(ii) भाई को पत्र

10-बी, कमला नगर
आगरा।
दिनांक: 5 अप्रैल 2014

प्रिय अनुज रवि,
शुभाशीष।
आशा करता हूँ तुम छात्रावास में सकुशल ही होंगे। तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है। मुझे मालूम हुआ कि तुमने नया मोबाइल चाचाजी से जन्म दिवस पर उपहारस्वरूप पाया है।
रवि अच्छी बात है अब तुम माताजी से जब चाहोगे बातें कर सकोगे पर मोबाइल फोन सीमित रूप में ही प्रयोग में लाना। मोबाइल पर समय की पाबन्दी न रखी तो पढ़ाई में अवरोध आएगा।
आज मोबाइल सुविधा के साथ-साथ मुसीबत ज्यादा है। खाने, पीने, सोने सभी पर मोबाइल का पहरा लगा रहता है। इसलिए मेरा कहा मानना मोबाइलको आक्तन प्रयोग में न लाना। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मोबाइल फोन हानिकारक ही माना जाता रहा है। तुम इन बातों का ध्यान रखना। पढ़ाई तुम्हारा लक्ष्य रहे इसलिए अपने समय का सही सदुपयोग करना। तुम्हारे पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।

तुम्हारा अग्रज
दिवाकर

पत्र भेजने का पता
सेवा में,
श्रीमान रवि शर्मा
डी. पी. एस. कॉलेज (छात्रावास)
कानपुर।

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए –
महान रसायनशास्त्री आचार्य नागार्जुन को अपनी प्रयोगशाला के लिये दो सहायकों की आवश्यकता थी। अनेक युवक उनके पास आये और निवेदन किया कि वे उन्हें अपने सहायक के रूप में नियुक्त कर लें। लेकिन परीक्षा लेने पर सभी प्रत्याशी अयोग्य साबिर अंत में आचार्य निराश हो गए। उनकी निराशा का कारण यह था कि युवकों में रसायनशास्त्र के ज्ञाता तो बहुत थे और भने विषय से परिचित भी, लेकिन एक रसायनशास्त्री के लिए जो एक पवित्र ध्येय होता है, उसका सभी में अभाव था। प्रत्याशियों में से किसी को अपने वेतन की चिंता थी, किसी को अपने परिवार की, तो किसी को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाना था। पर आचार्य नागार्जुन को ऐसे सहायक की आवश्यकता नहीं थी। उनके मन और विचार में कुछ और ही था। निराश होकर उन्होंने सहायक की आवश्यकता होते हुए भी स्वयं ही सारा कार्य करने का निश्चय कर लिया।

कुछ दिन बाद ही दो युवक आचार्य के पास आये। उन्होंने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हें अपना सहायक नियुक्त कर लें। आचार्य ने पहले तो उन्हें लौटा देना चाहा, लेकिन युवकों के अधिक आग्रह पर उन्होंने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। आचार्य ने दोनों युवकों को एक पदार्थ देकर दो दिन के भीतर ही उसका रसायन तैयार कर लाने को कहा। दोनों युवक पदार्थ लेकर अपने घर लौट आए।

दो दिन बाद एक युवक रसायन तैयार करके सुबह-सुबह ही उनके पास पहुंचा और रसायन का पात्र उन्हें देते हुए बोला “लीजिए आचार्य जी, रसायन तैयार है”। रसायन के पात्र की ओर बिना देखे ही आचार्य ने प्रश्न किया, “तो रसायन तैयार कर लिया तुमने ?”
रसायन का पात्र एक ओर रखते हुए युवक ने कहा, “जी हाँ।” आचार्य ने दूसरा प्रश्न किया, “रसायन तैयार करते समय किसी भी प्रकार की कोई बाधा तो उपस्थित नहीं हुई ?” युवक ने सकुचाते हुए उत्तर दिया, “बाधायें तो बहुत आई थीं, लेकिन मैंने किसी भी बाधा की चिंता किये बिना अपना कार्य चालू ही रखा तथा रसायन तैयार कर लिया। यदि मैं बाधाओं में उलझ गया होता, तो रसायन तैयार हो ही नहीं सकता था। एक ओर तो पिता के पेट में भयंकर शूल था, दूसरी ओर मेरी माता ज्वर से पीड़ित थी। ऊपर से मेरा छोटा भाई टांग तुड़वाकर पीड़ा से कराह रहा था। परन्तु ये बातें मुझे रसायन बनाने से विचलित नहीं कर सकीं।”

तभी दूसरा युवक खाली हाथ आकर वहाँ खड़ा हो गया। आचार्य जी ने उससे पूछा, “रसायन कहाँ है ?” युवक ने झिझकते हुए उत्तर दिया, “आचार्यजी, मैं क्षमा चाहता हूँ। मैं रसायन तैयार नहीं कर सका क्योंकि जाते समय मार्ग में एक वृद्ध व्यक्ति मिल गया था। वह एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गया था। मेरा सारा समय उसकी सेवा में ही व्यतीत हो गया।”
आचार्य ने पहले युवक से कहा, “तुम जा सकते हो। मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं। रसायनशास्त्री यदि पीड़ा से कराहते हुए व्यक्ति की उपेक्षा करे, तो वह अपने शास्त्र में अपूर्ण है।” दूसरे व्यक्ति को उन्होंने अपना सहायक नियुक्त कर लिया। भविष्य में वही युवक उनका दायाँ हाथ बना और उन्हें अति प्रिय लगने लगा।
(i) आचार्य को कैसे सहायकों की आवश्यकता थी और क्यों? [2]
(ii) आचार्य की निराशा का क्या कारण था ? निराश होकर उन्होंने क्या किया? [2]
(iii) आचार्य ने दोनों युवकों की परीक्षा लेने का क्या उपाय सोचा तथा क्यों ? [2]
(iv) दूसरा युवक रसायन क्यों तैयार नहीं कर सका ? इससे उसके चरित्र का कौन-सा गुण स्पष्ट होता है ? [2]
(v) आचार्य ने अपना सहायक किसे और क्यों चुना? [2]
Answer:
(i) आचार्य नागार्जुन को अपनी प्रयोगशाला के लिए दो ऐसे सहायकों की आवश्यकता थी जो विषय के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक रसायनशास्त्री का पवित्र ध्येय रखते हों। उनके मन एवं विचारों में पृथकता न हो। क्योंकि वह सेवाभाव व दूसरों के प्रति सहानुभूति रखते हुए अपने कार्य को उत्तमता से कर सकता है।
(ii) आचार्य की निराशा का मुख्य कारण था कि जो युवक आए थे वह रसायनशास्त्र के ज्ञाता तो बहुत थे और अपने विषय से परिचित थे, लेकिन अपने लक्ष्य के प्रति एकात्मकता का अभाव था। किसी को वेतन की चिन्ता थी किसी को अपने परिवार की तो किसी को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाना था। निराश होकर उन्होंने सहायक की आवश्यकता होते हुए भी स्वयं ही सारा कार्य करने का निश्चय किया।
(iii) आचार्य ने दोनों युवकों की परीक्षा लेने का यह उपाय सोचा-उन्होंने दोनों युवकों को एक पदार्थ देकर दो दिन के भीतर ही उसका रसायन तैयार कर लाने को कहा। क्योंकि वह ज्ञान-कौशल के अलावा मानवीय गुणों को भी परखना चाहते थे।
(iv) दूसरा युवक रसायन इसलिए तैयार नहीं कर सका क्योंकि जाते समय मार्ग में एक वृद्ध व्यक्ति मिल गया था। वह एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गया था उसका सारा समय उसकी सेवा में ही व्यतीत हो गया। इससे उसके चरित्र का यह गुण स्पष्ट होता है कि वह एक सहृदय, संवेदनशील, दयालु युवक था अपने कार्य से ज्यादा उसने दूसरे के जीवन की चिन्ता की।
(v) आचार्य ने दूसरे व्यक्ति को अपना सहायक नियुक्त कर लिया क्योंकि आचार्य की दृष्टि में रसायनशास्त्री यदि पीड़ा से कराहते हुए व्यक्ति की उपेक्षा करे तो वह अपने शास्त्र में अपूर्ण है।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्न शब्दों के विशेषण बनाइए: [1]
रसायन, नुकसान।
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए: [1]
बाधा, पीड़ा।
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए: [1]
अंत, पवित्र, निराशा, भविष्य।
(iv) भाववाचक संज्ञा बनाइए: [1]
अतिथि, निपुण।
(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए: [1]
टका सा जवाब देना, सिक्का जमाना।
(vi) कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन कीजिए:
(a) अंत में आचार्य निराश हो गए।
(आशा शब्द का प्रयोग कीजिये)
(b) वह मुझे अति प्रिय लगने लगा।
(वाक्य को भविष्यत् काल में बदलिए)
(c) उसका कार्य प्रशंसा के योग्य था।
(रेखांकित के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग करते हुए वाक्य पुनः लिखिये)
Answer:
(i) विशेषण शब्द –
रसायन – रसायनिक
नुकसान – नुकसानदायक

(ii) पर्यायवाची शब्द –
बाधा – अवरोध, अड़चन,
पीड़ा – कष्ट, अवसाद।

(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
अंत – आदि
पवित्र – अपवित्र
निराशा – आशा
भविष्य – वर्तमान

(iv) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
अतिथि – आतिथ्य
निपुण – निपुणता

(v) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
टका सा जबाव देना –
वाक्य प्रयोग – रमेश ने थोड़ी देर के लिए रवि से साइकिल माँगी तो रवि ने शीघ्र ही उसे मना करके टका सा जबाव दे दिया।
सिक्का जमाना –
वाक्य प्रयोग – राजीव ने अपनी दयालुता से अध्यापक के मन पर सिक्का जमा लिया था।

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन –
(a) अंत में आचार्य को कोई आशा न रही।
(b) वह मुझे अति प्रिय लगने लगेगा।
(c) उसका कार्य प्रशंसनीय था।

Section – B (40 Marks)

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  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य: Out of Syllabus
  • एकांकी सुमन: Out of Syllabus
  • काव्य-चन्द्रिका: Out of Syllabus

ICSE Class 10 Hindi Previous Years Question Papers

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